Brahamand Ek Awaz Hai

Ashok Shah Author
Hardbound
Hindi
9789387919129
1st
2018
144
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ब्रह्माण्ड एक आवाज़ है - 'ब्रह्माण्ड एक आवाज़ है'—इस कविता संग्रह की यह पंक्ति एक गूँज-अनुगूँज की भाँति हमसफ़र होती है। ऐसी अनेक पंक्तियाँ हैं आपको विगत और आगत से जोड़ती हैं मसलन—'वनस्पतियाँ देह की इन्द्रियाँ हैं' और 'नाद के भीतर अन्तर्नाद है' या फिर कुछ नहीं सिर्फ़ शून्य था। अद्भुत अनन्त था, आदि। कवि अशोक शाह का काव्य मार्ग इस अर्थ में जुदा है कि वह बरास्ते दर्शन सत्य का आग्रही है। सत्य भी वैज्ञानिक चेतना से अभिव्यक्त हो, ऐसा उनका अभिमत है। उनकी कविताओं के केन्द्र में सृष्टि के विविध आयाम हैं प्रत्यक्ष भी और परोक्ष भी लेकिन उनमें यथार्थ से गहरा सम्बन्ध है। 'किसी भी भूधर से कहीं अधिक भारी है। सदियों से संचित तुम्हारा दुःख' इन पंक्तियों में करुणासिक्त यथार्थ है और उसके साथ कवि की पक्षधरता जो संग्रह की प्राणवायु है। इसलिए वे मनुष्यता पर मँडराते ख़तरों से वाक़िफ़ हैं। धर्म के आडम्बर, राजनीति के दुष्चक्र और आज के शक्ति केन्द्रों के पाखण्ड को समझता कोई कवि ही कह सकता है—'भेद करती सीढ़ियाँ। विकास की पायदान हैं' और 'हम जितना फैलते हैं। भीतर से नंगे होने लगते हैं।' अशोक शाह मनुष्य में बढ़ते नंगपन से दुखी हैं और प्रतिरोध तत्पर भी। कई कविताओं में यह सहज द्रष्टव्य है। अशोह शाह की कविताएँ जीवन-जगत का मौलिक ढंग से स्पर्श करती हैं। इनमें प्रेम और करुणा के स्वर प्रमुख हैं जो मंगल गान की तरह सुनायी पड़ते हैं। कवि के इस सत्प्रयास को पाठक पढ़ेंगे और कवि के सरोकारों से जुड़ेंगे, ऐसी कामना है।

अशोक शाह (Ashok Shah )

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