Guzar Kayon Naheen Jata

Hardbound
Hindi
9788170555655
2nd
2006
96
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गुज़र क्यों नहीं जाता -
आठवें दशक के उत्तरार्ध में जब धीरेंद्र अस्थाना ने हिन्दी कहानी की दुनिया में कदम रखा था तो कथाकारों-आलोचकों ने उन्हें नवलेखन की उम्मीद के तौर पर रेखांकित किया था। लगातार स्तरीय लेखन से धीरेंद्र ने उत्तरोत्तर इस अपेक्षा को पुष्ट ही किया। अपने गढ़े जाने के समूचे समय में धीरेंद्र की रचनाएँ पाठक के भीतर एक गहरी उत्सुकता को लगातार जागृत रखती हैं। धीरेंद्र की रचनाओं ने जीवन के नियमों की नहीं बल्कि जीवन की ही पुनर्रचना की और इसी कारण हिन्दी साहित्य की आधुनिकतम ज़मीन पर वे अलग से खड़ी नज़र आयी।
धीरेंद्र अस्थाना का पहला उपन्यास 'समय एक शब्द भर नहीं है' उत्तराखंड में चल रहे 'चिपको आन्दोलन' की पृष्ठभूमि पर आधारित था तो दूसरा उपन्यास 'हलाहल' भारतीय परिवेश में मौजूद उन प्रतिकूल जीवन स्थितियों को उजागर करता था जिनमें फंस कर कोई भी संवेदनशील व्यक्ति ‘नारसिसस' जैसी कारुणिक स्थिति को प्राप्त होता है। और अब यह तीसरा उपन्यास 'गुज़र क्यों नहीं जाता'।
‘गुज़र क्यों नहीं जाता' उस दुनिया की विद्रूपताओं तल्खियों-षड्यन्त्रों का पर्दाफाश करता है जो लिखने-पढ़ने वालों की दुनिया है और जिसे अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील, सहिष्णु और मानवीय माना जाता है। उस तथाकथित मानवीय दुनिया की अमानवीयता को बेपर्दा करना एक बड़ा जोखिम मोल लेना था, जो धीरेंद्र ने लिया, अब इसके जो भी ख़तरे हों... - राकेश श्रीमाल

धीरेन्द्र अस्थाना (Dhirendra Asthana)

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