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और फिर - 'और फिर' राधावल्लभ त्रिपाठी के मूल संस्कृत में लिखे उपन्यास का हिन्दी रूपान्तर है। संस्कृत की श्रेष्ठ औपन्यासिक कृति के रूप में सम्मानित यह उपन्यास आज से दो हज़ार साल पहले के मध्यदेश और कश्मीर की सजीव झाँकी प्रस्तुत करता है। मातृत्व ग्रन्थि से उत्प्रेरित नायक विशाख की उत्तरापथयात्रा उसके जीवन संघर्ष और अन्तःसंसार को नालन्दा और तक्षशिला के विद्यावैभव और सांस्कृतिक उन्मेष से जोड़ती हुई कश्मीर में पर्यवसित होती है। भारतीय जनमानस तथा लोकजीवन की अन्तरंग अनुभूतियों का संसार उजागर करने वाला यह उपन्यास चेतना के ऊर्ध्वारोहण तथा कला, साहित्य और संस्कृति की साधना का अनूठा नमूना है। संस्कृत साहित्य के जाने-माने अध्येता राधावल्लभ त्रिपाठी अपनी औपन्यासिक कृतियों में काल के आवर्तन और विवर्तन का निरूपण करते हुए अतीतरस का नवसन्धान करते हैं, तथा हजारीप्रसाद द्विवेदी की उस उपन्यास यात्रा में नये पड़ाव रचते हैं, जिसमें हास्य, व्यंग्य, विनोद की बहुवर्णी छटाएँ मानवीय अनुभूतियों के संसार को सम्पन्न बनाती हैं।
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