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असफल आरोप - मन में अभियोग पोषण करना मनुष्य का सहजात धर्म है। इसका उत्स है हमारी सत्ता का निगूढ़तम प्रदेश, जो जन्मा है हमारी अपूर्णता से, अभावबोध से, (चाहे सामयिक हो या स्थायी) अपने भीतर घुमड़ रही शून्यता से। उस अनुभव का वैचित्र्य प्रायः कम ही समझा जाता है। सभी अभियोग करते नहीं बनते। कभी-कभी स्वेच्छाकृत भाव से अपने अन्दर छिपाकर रखे जाते हैं तो कभी उन्हें अभियोग करने का अवसर नहीं मिलता। अभियोग अक्सर निरर्थक लगता है, क्योंकि अभियोग प्रायः असफल होता है। समकालीन भारत के दक्षतम कवियों में सीताकान्त महापात्र एक उल्लेखनीय नाम है। उन्होंने पारम्परिक काव्य-शैली और पाश्चात्य प्रभावित शैली में से नयी सम्भावनाओं का सन्धान किया है, नयी काव्य चेतना और नये अभिमुख्य पर जोर दिया है। अतीत और भविष्य को एकत्र कर एक वैकल्पिक यथार्थ का निर्माण कविता के ज़रिये सम्भव है, इसमें उन्हें पूर्ण विश्वास है। वे दुःख और वेदना में भी मानव स्थिति के गहनतम आनन्द की तलाश में हैं, यही कारण है कि वे अपने समय में इलियट व पाउंड, रैम्ब्रा व बॉदलेयर की तरह अपनी संस्कृति के मिथक तथा आर्किटाइप और पारम्परिक प्रतीकों का व्यवहार करते हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित ओड़िया कवि सीताकान्त महापात्र का यह नया काव्य संकलन हिन्दी पाठकों के लिए एक सौगात है।
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