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Parajay

Hardbound
Hindi
9789350001639
1st
2010
314
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₹425.00

पराजय सोवियत रूसी लेखक फ़ेदयेव का पहला उपन्यास है। उपन्यास घटना क्रम छापामारों के जीवन की जटिलताओं, आस्थाओं और परेशानियों के गिर्द घूमता है। उपन्यास का केंद्रीय चरित्र लेविनसन, एक गुरिल्ला नायक है, जो कम्युनिस्ट चेतना के उच्च आदर्शों की प्रतिमूर्ति है। वह न केवल ईमानदार है, मार्मिक ढंग से मानवीय भी है। क्रान्ति के विकट समय में, जब जंगल में भूख, ठण्ड और हथियारों की कमी से जूझते छापामारों का आत्म-बल क्षीण है, लेविनसन की मानवीयता और चारित्रिक दृढ़ता के चलते ही वोल्शेविक क्रान्ति का यह युद्ध लड़ा जा रहा है।

फ़ेदयेव के स्वयं छापामार रहे आने के अनुभवों के कारण इस उपन्यास का कथानक न केवल विश्वसनीय बन पड़ा है, बल्कि रूसी क्रान्ति में अपनी आस्था को भी सच्चे, सटीक ढंग से संप्रेषित करता है। कई मायनों में यह एक उदास किताब है। सच्ची आस्था इतिहास में गलत पक्षधरता के कारण किस कदर आत्म-पराजयी हो सकती है-पराजय और उसके लेखक फ़ेदयेव का जीवन इसका उदाहरण हैं।

उल्लेखनीय यह भी है कि इस पुस्तक का अनुवाद युवा कथाकार निर्मल वर्मा ने 1954 में किया था, जब वह स्वयं एक क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट थे और कम्युनिज़्म से उनका मोहभंग (1956) अभी होना था। जो लोग सोवियत क्रान्ति की पीठिका में रुचि रखते हैं उन्हें यह उपन्यास अवश्य आकर्षित करेगा।

निर्मल वर्मा (Nirmal Verma )

निर्मल वर्मा (1929-2005) भारतीय मनीषा की उस उज्ज्वल परम्परा के प्रतीक-पुरुष हैं, जिनके जीवन में कर्म, चिन्तन और आस्था के बीच कोई फाँक नहीं रह जाती। कला का मर्म जीवन का सत्य बन जाता है और आस्था की चुनौत

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अलेक्सांद्र फ़ेदयेव (Aleksander Fadeyev)

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