Prakash

Hardbound
Hindi
9789350001271
1st
2009
304
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प्रकाश -
‘प्रकाश’ उपन्यास संयुक्त परिवार की पृष्ठभूमि में लिखा गया है। संयुक्त परिवार भारतीय समाज का आधार स्तम्भ है। वर्तमान युग में कुटुम्ब का विघटन एक चिन्ता का विषय है। संयुक्त परिवार का कैसे आनन्दमय तथा उत्सवमय ढंग से परिचालन किया जाये, यही इस उपन्यास का कथानक है।
'प्रकाश' के माध्यम से जहाँ संयुक्त परिवार के कर्ता के दायित्व की उपस्थापना की गयी है, वहीं पवन, ललिता, रवि एवं देवश्री जैसे उच्छृंखल पात्रों की अवधारणा की गयी है ताकि प्रत्येक परिवार इस कृति में अपना प्रतिबिम्ब देख सके। यह उपन्यास संयुक्त परिवारों को अन्धकार से प्रकाश में ले जायेगा।
नामवर सिंह के शब्दों में, "दरअसल संयुक्त परिवार प्रकारान्तर से एक रूपक भी है-राजनीतिक रूपक। अभी 'मुम्बई मुम्बईकर का' नारे के नाम पर बिहारियों तथा अन्य भाषा-भाषियों को वहाँ से खदेड़ा जा रहा है, एक तरह से यह कोशिश से बनाये गये भारत नाम के राष्ट्र को तोड़कर खण्ड-खण्ड करने की कुचेष्टा है। इस पृष्ठभूमि में प्रमोद जी का यह उपन्यास संयुक्त परिवार के बहाने भारत के रूप में एक राष्ट्र की अस्मिता को बचाये रखने का भी आह्वान है।"
उपन्यास में अनेक रोचक प्रसंग हैं। आशा है, पाठकों को इस कृति में जीवन की सम्पूर्णता का स्वाद आयेगा।

अन्तिम पृष्ठ आवरण -
प्रमोद अग्रवाल की निगाह में हमेशा आम आदमी का जीवन होता है और उसके जीवन को बेहतर करने की कामना होती है। उनकी चिन्ता यह भी है कि परिवार को, देश को टूटने से कैसे बचाया जाये।
-महाश्वेता देवी

डॉ. प्रमोद कुमार अग्रवाल (Dr. Pramod Kumar Aggrawal)

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