Prayojanmoolak Hindi Aur Patrakarita

Hardbound
Hindi
9788181436634
3rd
2023
394
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भाषा की समस्या एक वास्तविक सामाजिक समस्या है, जो किसी-न-किसी रूप में सामाजिक व्यवहार, सांस्कृतिक चेतना और शैक्षिक ढाँचे आदि की विभिन्न सामाजिक भूमिकाओं से जुड़ी होती है। ये सभी समस्याएँ समुदाय की मानसिक स्थिति और उन विभिन्न सामाजिक भूमिकाओं से जुड़ी रहती हैं, जिनको पारस्परिक आदान-प्रदान के लिए उसके सदस्यों को विभिन्न सामाजिक सन्दर्भों में निभाना होता है । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हमारे समाज की बौद्धिक चेतना एवं सामाजिक सन्दर्भों में काफ़ी परिवर्तन आया है और इस समय सामान्य व्यक्ति उपयुक्त शिक्षा-प्रणाली के अभाव में एक तनाव का अनुभव कर रहा है। हमारे सामाजिक जीवन के कई क्षेत्रों में अंग्रेज़ी का व्यवहार धीरे-धीरे हट रहा है। इसलिए अंग्रेज़ी तथा अन्य भारतीय प्रादेशिक भाषाओं के सम्बन्धों के लिए आयाम और हिन्दी- व्यवहार के नये सन्दर्भ उभर रहे हैं। इसलिए एक गुरुतर दायित्यबोध के साथ हमारा यह कर्त्तव्य बनता है कि हम एक और व्यापक सम्प्रेषण के रूप में अखिल भारतीय हिन्दी की शैली और उसके भाषापरक प्रभेदक लक्षणों को निर्धारित करें तो दूसरी ओर सामाजिक व्यवहार के उन सीमित क्षेत्रों की भाषा के रूप में उसे विकसित करने का प्रयास करें, जिसमें अब तक अंग्रेज़ी का प्रयोग होता रहा है। इसके साथ ही हिन्दी को संघ की 'राजभाषा' के रूप में प्रतिष्ठित करना है और यह तभी सम्भव है, जब 'सहयोगी' भाषा के रूप में अहिन्दी भाषी क्षेत्र में इसका व्यापक प्रसार हो । आधुनिक विचारों को व्यक्त करनेवाली भाषा के रूप में हिन्दी को विकसित करने के साथ-साथ इसे भारत की सामासिक संस्कृति का समर्थ संवाहक माध्यम बनाने की आवश्यकता है। इसके अलावा इसे विभिन्न व्यवसायों तथा काम-धन्धों के लिए सेवा-माध्यम के रूप में भी विकसित करना है।


-भूमिका से

डॉ. दिनेश प्रसाद सिंह (Dr. Dinesh Prasad Singh )

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