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Kabeer : Nai Sadi Mein-3 : Kabeer Baaj Bhi, Kapot Bhi, Papeeha Bhi

Hardbound
Hindi
-
2nd
2008
3
184
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₹250.00

कबीर : बाज भी, कपोत भी, पपीहा भी

सवाल इस बात का नहीं है कि दलित किसी से कुछ माँगता है या वह किसी का कुछ छीनता है। ऐसा एक बार भी नहीं है। यह भ्रम फैलाया गया है। सच्ची बात यह है कि दलित विश्व-सभ्यता में अपना विशेष योगदान करना चाहता है। उसके इस नेक इरादे पर शंका क्यों है ? कबीर के रूप में यह दलित योगदान महानता की पराकाष्ठा पर पहुँचा हुआ है। फिर, धर्म से सारा जीवन प्रभावित होता है। साहित्य इस प्रभाव से बच नहीं सकता। कबीर के धर्म और कबीर के साहित्य के सम्बन्ध को इसी रूप में समझा जाना चाहिए।

- भूमिका से

डॉ. धर्मवीर (Dr. Dharamveer)

जन्म : 9 दिसम्बर, 1950।व्यवसाय : 1980 के बैच के केरल कैडर के आई.ए.एस. अधिकारी।रचनाएँ :• दूसरों की जूतियाँ (2007)• तीन द्विज हिन्दू स्त्रीलिंगों का चिन्तन (2007)• चमार की बेटी रूपा (2007) • दलित सिविल कानून (2007) • 'जूठ

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