“... दिनकर उत्तर छायावाद के शिखर कवि हैं। उनकी काव्यकृति 'उर्वशी' न सिर्फ उनकी, बल्कि हिंदी कविता की भी महत्तम उपलब्धि है। इसका प्रकाशन और इसकी लोकप्रियता आधुनिक हिंदी कविता के इतिहास का विलक्षण और बहसतलब अध्याय है। इसके जरिए दिनकर की काव्यशक्ति की वह भास्वरता प्रकट होती है, जो नयी कविता के उत्कर्ष के जमाने में अपने अलग सामाजिक मूल्य और काव्य गुण के बावजूद, बहस और लोकप्रियता का अलग और बड़ा 'स्पेस' बनाती है... ।
'कल्पना' का 'उर्वशी' विवाद ऐसा ऐतिहासिक दस्तावेज़ है, जिसके पृष्ठों पर स्वस्थ, सार्थक एवं खुली बहस के साहित्यिक साक्ष्य भरे पड़े हैं। यहाँ साहित्यिक मूल्यों की टकराहट से उत्पन्न वे चिनगारियाँ हैं, जिनके आलोक में एक समय में दो भिन्न काव्य धाराओं की पहचान तो होती ही है, यह सच भी सामने आता है कि एक ही समय में कैसे उनका सार्थक सह-अस्तित्व भी बनता है और उनके बीच सार्थक संवाद भी संभव हो पाता है...।
...नयेपन, स्तरीयता और निष्पक्ष साहित्य विवेक के लिए पहचानी जाने वाली पत्रिका 'कल्पना' में प्रकाशित ‘उर्वशी’-विवाद से गुजरना हिंदी कविता के इतिहास की एक जरूरी बहस से गुजरना है। हिंदी कविता पर चलने वाली बहसों और इनके इतिहास में रुचि रखने वाले ऐसे पाठक के लिए, जिसका विश्वास संवाद में है और जो बहस को विकास की जरूरी सीढ़ी मानता है, 'कल्पना' के 'उर्वशी' विवाद की सामग्री ऐसा दस्तावेज़ है, जिसकी तुलना आधुनिक काल की किसी अन्य काव्यकृति सम्बन्धी बहस से नहीं हो सकती है।”
- भूमिका से
हमारे समय के गम्भीर और दृष्टि-सम्पन्न आलोचक गोपेश्वर सिंह द्वारा संपादित यह पुस्तक - ""कल्पना' का 'उर्वशी' विवाद" - न सिर्फ, 'उर्वशी' सम्बन्धी बहस को सामने लाती है, बल्कि उसे नये परिप्रेक्ष्य में देखे जाने का आधार भी प्रस्तुत करती है।
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