‘नाटक जारी है’ की समृद्ध मिज़ाजी और 'इस यात्रा में' की आत्मीय दुनिया के बाद इस संग्रह में लीलाधर जगूड़ी के अनुभव और शब्द अधिक दुविधारहित हुए हैं। इनमें कतई आत्मनिन्दा नहीं है और निरी आक्रामकता भी नहीं; मगर वह है जो शायद आक्रामक होने का जनवादी विवेक है।
एक तरह से ये कविताएँ समकालीन भारतीय मनुष्य का इतिहास भी हैं । यही वजह है कि जगूड़ी कविता के चालू ढाँचे को उस बड़ी हद तक तोड़ते हैं जो कविता और उसके पाठक के बीच की नक़ली दूरी तोड़ने के लिए जरूरी है।
ये कविताएँ आदमी से लगभग बातचीत हैं और इनमें ज़िन्दगी के मौजूदा अन्धकार में लड़ी जा रही लड़ाई के कथापक्ष हैं। इनमें शब्दों से एक नया काम लिया गया है जो आदमी की पीड़ा को ताक़त तक पहुँचाने की अभीप्सा से अधिक सक्रिय दिखते हैं।
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