अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान की एक शाखा के रूप में अनुवाद सिद्धान्त एक अपेक्षाकृत नवीन ज्ञानक्षेत्र है। इसके दो विशिष्ट सन्दर्भ हैं-पाठसंकेतविज्ञान (टेक्स्ट सिमियॉटिक्स) तथा सम्प्रेषण सिद्धान्त-जिनकी भूमिका पर इस पुस्तक में, अनुवाद सिद्धान्त को एक बहुविद्यापरक और अपेक्षाकृत स्वायत्त अनुशासन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसकी दूसरी विशेषता है सीमित आकार में अनुवाद सम्बन्धी लगभग सभी मुद्दों का सैद्धान्तिक विवेचन अनुवाद क्या है, कितने प्रकार का है, कैसे होता है, अनुवाद कैसे करें, कैसे जाँचें कैसे सिखाएँ इस सबका सिद्धान्तपुष्ट विवेचन इस पुस्तक में मिलेगा, सम्भवतः हिन्दी में पहली बार अनुवाद सिद्धान्त के उच्चस्तरीय छात्रों तथा विषय में रुचि रखनेवाले अन्य गम्भीर पाठकों के लिए यह पुस्तक समान रूप से उपादेय है।
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