‘चचा छक्कन के छक्के’ संग्रह के लघु नाटकों में सच में हास्य-व्यंग्य के चौक्के छक्के लगते हैं। स्कूल में एडमिशन की समस्या नो एडमिशन हो या नर्सिंग होम में महँगे इलाज से बेहाल मरीज़ एक अनार, सौ बीमार, पुरुष द्वारा घर का काम करने की मशक्कत नौकर नहीं चाहिए या फिर हर तरह के कुँवारों की समस्या का जंजाल कुँवारा सम्मेलन, ये नाटक हँसाने के साथ-साथ किसी न किसी विसंगति की बखिया भी उधेड़ते हैं। शरीफ़ों की शान्ति असामाजिक तत्त्वों के सामने तथाकथित शरीफ़ों की बोलती बन्द रहने की जम कर ख़बर लेता है। और हुजूर दिल्ली दूर है कहीं घूमने के लिए जाते परिवार को वापस घर बैठा देने वाली पड़ोसियों की कारगुज़ारियों के हास्य से भरपूर है। चचा छक्कन के छक्के में उम्र पचपन की दिल बचपन का वाला मज़ेदार खेल है।
ये लघु नाटक पढ़ने में रोचक और मंचन में मुस्कान लिए हैं।
संजीव निगम (Sanjiv Nigam )
संजीव निगम जन्मतिथि : 16 अक्टूबरशिक्षा : एम.फिल (हिन्दी साहित्य), दिल्ली विश्वविद्यालय ।वर्तमान में : निदेशक-हिन्दुस्तानी प्रचार सभा, मुम्बई। पूर्व मुख्य प्रबन्धक (मार्केटिंग और कॉर्पोरेट कम्