हिन्दी कहानी को निर्विवाद रूप से एक नयी कथा - भाषा प्रदान करने वाले अग्रणी कथाकार निर्मल वर्मा की साहित्यिक संवेदना एक 'जादुई 'लालटेन' की तरह पाठकों के मानस पर प्रभाव डालती है । प्रायः सभी आलोचक इस बात पर एकमत हैं कि समकालीन कथा-साहित्य को उन्होंने एक निर्णायक मोड़ दिया।
'लाल टीन की छत' उनकी सृजनात्मक यात्रा का एक प्रस्थान बिन्दु है जिसे उन्होंने उम्र के एक ख़ास समय पर फ़ोकस किया है। 'बचपन के अन्तिम कगार से किशोरावस्था के रूखे पाट पर बहता हुआ समय, जहाँ पहाड़ों के अलावा कुछ भी स्थिर नहीं है।' यहाँ चीज़ों को मानवीय जीवन्तता में बचाये रखने की कोशिश ही उनके लिए रचना है। इस उपन्यास में आत्मा का अपना अकेलापन है तो देह की अपनी निजी और नंगी सच्चाइयों के साथ अकेले होने की यातना भी ।
यह काया नाम की एक ऐसी लड़की की कथा है जो सरदी की लम्बी, सूनी छुट्टियों में इधर-उधर भटकती रहती है और अपनी स्मृतियों के गुंजलक को खोलती रहती है। वह उम्र के एक ऐसे मोड़ पर है जहाँ बचपन पीछे छूट चुका है और आनेवाला समय अनेक संकेतों और रहस्यों-सन्देशों से भरा हुआ है। लेकिन यह सिर्फ़ एक अकेली लड़की की ही नहीं, बल्कि अकेली पड़ गयी संवेदना की कहानी है जहाँ पात्र अपने-अपने अँधेरे व्यक्तिगत कोनों में भटकते रहते हैं। यहाँ आतंक और सम्मोहन के ध्रुवों के बीच फैली अँधेरी भूल-भुलैया और स्मृतियों की रचनात्मक बुनावट में अनुभव तथा संवेदना के व्यापक अर्थ व अनुगूंजें अन्तर्निहित हैं।
निर्मल वर्मा (Nirmal Verma )
निर्मल वर्मा (1929-2005) भारतीय मनीषा की उस उज्ज्वल परम्परा के प्रतीक-पुरुष हैं, जिनके जीवन में कर्म, चिन्तन और आस्था के बीच कोई फाँक नहीं रह जाती। कला का मर्म जीवन का सत्य बन जाता है और आस्था की चुनौत