Hath To Ug Hee Aate Hain

Hardbound
Hindi
9789390678525
1st
2020
158
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कला प्रिय भारतीय समाज में कहानी सबसे महत्त्वपूर्ण विधा रही है। यहाँ भारतीय महाकाव्यों के भीतर भी कहानियाँ संचरित होती हैं। तब विशुद्ध कहानी की सामाजिक प्रदेयता असन्दिग्ध हो जाती है।

श्योराज सिंह बेचैन की कहानियों की भाषा काव्यात्मक होती है। इससे भाषायी प्रभाव और गहरा हो जाता है। जहाँ तक कथावस्तु का प्रश्न है वह भारतीय समाजों के ऐसे अँधेरे कोने से जीवन-चित्रण करते हैं जो पुरातनता के क्रम में नूतन स्वराज सापेक्ष नये सभ्य समाज के स्वप्न और छवियों के बिम्ब निर्मित करते हैं। सहजता, प्रवाहमयता और ग्राह्यता में स्वाभाविक वृद्धि करती है। कथाकार की दृष्टि विकास की राह को प्रकाशित करने वाले दीयों तले छूटते अँधेरों को चिह्नित करती है और जब वे उपेक्षित व अछूते पात्रों की कथाएँ बुनते हैं, तो लगता है साहित्य-संस्कृति का सामासिक मिलाजुला संवर्धन हो रहा है जिसमें मानव चेतना के समुद्र में ज्वार-भाटा उठ रहा है।

कविता, समीक्षा, स्तम्भ इत्यादि से हज़ारों पृष्ठ लिखने के उपरान्त लेखक की मानवीय संवेदना और सुधारेच्छु व्यग्रता जो आत्मकथा से कहानी कथा तक विस्तार पायी है, उससे लेखक ने भारतीय कथा-साहित्य की समृद्धि में निराला, अभूतपूर्व युगान्तरकारी योगदान किया है। सृजन-साधना की चरणबद्ध यात्रा ने कथाकार को अर्थपूर्णता और परिपक्वता के मौजूदा मकाम तक पहुँचाया है। हाथ तो उग ही आते हैं कथा संवेदना का ऐसा उत्कृष्ट संग्रह है, जिसमें कला- कल्पना, यथार्थ और स्वप्न का भरापूरा संगम दिखाई देता है। सकारात्मक प्रभावोत्पादकता का अभूतपूर्व संगम दिखाई पड़ता है।

हाथ तो उग ही आते हैं की एक-एक कहानी एक-एक उपन्यास की कथा समेटे हुए है। यह देश की सांस्कृतिक बहुलता तथा साहित्यिक विविधता का प्रतिनिधि उदाहरण है, जिसमें लगता है पात्र पृष्ठों से बाहर आकर पाठकों अपके कानों में अपना भोगा हुआ सच बयान कर रहे हैं। ऐसी कथाकृति की अनदेखी नहीं की जा सकती। सार्थक सृजन का स्वतः संज्ञान लेने वाले पारखीजनों के लिए यह स्वागतेय होनी ही चाहिए। तथापि दाग तो चाँद में भी हैं चिह्नित करेंगे तो धो दिये जाएँगे ।

श्यौराज सिंह बेचैन (Sheoraj Singh Bechain)

श्यौराज सिंह बेचैन  जन्म : 5 जनवरी 1960, गाँव नदरोली, बदायूँ (उ.प्र.) शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), पीएच.डी., डी.लिट्. रचनाएँ : मेरा बचपन मेरे कन्धों पर (आत्मकथा); क्रौंच हूँ मैं, नई फसल कुछ अन्य कविताएँ (कविता सं

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