Pichhli Garmiyon Mein

Hardbound
Hindi
9789387155640
2nd
2021
180
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निर्मल वर्मा बार-बार अपनी रचना-संवेदना के परिचित दायरों की ओर वापस लौटते हैं। हर बार चोट की एक नयी तीव्रता के साथ लौटते हैं और जितना ही लौटते हैं, उतना ही वह कुछ जो परिचित है और भी परिचित, आत्मीय और गहरा होता जाता है। अनुभव के ऊपर की फालतू परतें छिलती जाती हैं और रचना अपनी मूल संवेदना के निकट अधिक पारदर्शी होती जाती है। निर्मल वर्मा की रचना की पारदर्शी चमड़ी के नीचे आप उस अनुभव को धड़कते सुन सकते हैं, छू सकते हैं। यह अनुभव बड़ा निरीह और निष्कवच है। आपको लगता है कि यह अपनी कला की पतली झिल्ली के बाहर की बरसती आग और बजते शोर की जरब नहीं सह पाएगा।

- मलयज

निर्मल वर्मा (Nirmal Verma )

निर्मल वर्मा (1929-2005) भारतीय मनीषा की उस उज्ज्वल परम्परा के प्रतीक-पुरुष हैं, जिनके जीवन में कर्म, चिन्तन और आस्था के बीच कोई फाँक नहीं रह जाती। कला का मर्म जीवन का सत्य बन जाता है और आस्था की चुनौत

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