जलती झाड़ी
निर्मल वर्मा की कहानियाँ हमारे भीतर खुलती हैं। ये कैसे खुलती हैं भीतर? शायद इस तरह कि वे हमें भीतर जाने को कहती हैं। हम बहुत भीतर, अपने जिस मन को जानते हैं, वह दुख का मन है। सुख को सपने की तरह जानता हुआ-दुख का मन। निर्मल वर्मा की कहानियों में यह दुख है। एक वयस्क आदमी का दुख और उसका अकेलापन । ऐसा बीहड़ अकेलापन, जिसमें लोगों के साथ होने, उनका बने रहने तक की, व्याकुल इच्छाएँ हैं, लेकिन उन इच्छाओं को लीलता हुआ अकेलापन है, एक व्यक्ति का अकेलापन। बेशक इस व्यक्ति का वर्ग भी है लेकिन अनुभव एक विशेष व्यक्ति का है, वर्ग को धारण करनेवाले किसी साहित्यिक सूत्र का नहीं। यह सच्चा और खरा दुख ही है, जो निर्मल वर्मा की कहानियों के संसार का मानवीकरण करता है। उन्हें हमसे जोड़ता है। और हम उन कहानियों को पढ़कर जानते-भर नहीं हैं। उनके साथ होते हैं। निर्मल वर्मा से जुड़ते हैं।
- प्रभात त्रिपाठी
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