Garv Se Kaho

Hardbound
Hindi
9789389563726
1st
2020
136
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हम न अच्छे घरों में रहते हैं, न ढंग का खाना खाते हैं, न ही अच्छा पहनते हैं। पानी तक साफ़ नहीं पीते। हमारा अच्छा रहना तुम लोगों को खटकता है। तुम लोगों ने हमारे खेत, हमारा सुख-चैन छीन लिया। हमें नंगा किया। हमें जान से मारते रहे। हमारे पास है ही क्या? गधे, कुत्ते, सूअर, झाडू! वह भी तुमसे देखा नहीं जाता? हम अछूत हैं लेकिन हैं तो इन्सान! हमारी वेदना आप लोगों की समझ में नहीं आयी? कभी भी तुम लोगों ने हमारी पुकार को सुना है? हम कभी तुम लोगों के विरोध में गये नहीं । तुम लोगों ने तरह-तरह से जीना मुश्किल किया। फिर भी हमने गाँव छोड़ा नहीं। गाँव के साथ रहे। हमसे इतना बैर क्यों? हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? तुम्हारी जूठन पर हम ज़िन्दा रहते हैं। न तुम्हारे घर में आते हैं, न मन्दिर, न श्मशान में। तुम लोगों से चार कदम दूर रहते हैं। तुम लोगों का हमारी परछाईं से परहेज़ है। हमारी परछाईं से, स्पर्श से तुम भ्रष्ट होते हों। हम गाँव के बाहर रहते हैं। तुम्हारे गाँव की सफ़ाई करते हैं। मरे जानवर ढोते हैं। तुमसे आँख उठाकर बात तक नहीं करते। न कभी उल्टा जवाब देते हैं। तुम लोगों का थूक झेलते हैं। तुम्हारी दी हुई भीख पर जीते हैं फिर भी तुम हमें क्यों सताते हो?

- इसी उपन्यास से

पद्मजा घोरपड़े (Padmaja Ghorpade )

एसोसिएट प्रोफ़ेसर, हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं भूतपूर्व प्रभारी प्राचार्य, स.प. महाविद्यालय, पुणे।प्रकाशित पुस्तकें : कुल 38; समीक्षा, कविता, कहानी, पत्रकारिता, जीवनी तथा अनुवाद लेखन हेतु राष्ट्र

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शरणकुमार लिंबाले  (Sharankumar Limbale)

शरणकुमार लिंबाले  जन्म : 1 जून 1956 शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. हिन्दी में प्रकाशित किताबें : अक्करमाशी (आत्मकथा) 1991, देवता आदमी (कहानी संग्रह) 1994, दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र (समीक्षा) 2000, नरवानर (उपन्

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