Yahan Se Wahan

Ashok Vajpeyi Author
Hardbound
Hindi
9789350007044
1st
2011
408
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सभी लेखक यायावर होते हैं हालाँकि वे प्रायः इसे स्वीकार नहीं करते । पाठक भी लेखकों के साथ एक तरह की ख़ानाबदोशी करते रहते हैं। अकसर उन्हें इसकी ख़बर नहीं होती। हम सभी 'यहाँ' से 'वहाँ' जाते रहते हैं, या उसकी कोशिश में लगे रहते हैं। हरेक का 'यहाँ' कुछ अलग होता है, कुछ समान : इसी तरह हरेक का ‘वहाँ' भी कुछ अलग होता है, कुछ समान । मनुष्य होने का सुख और विडम्बना दोनों ही इस 'यहाँ' से ‘वहाँ' में निहित हैं।

हर यात्रा भौतिक नहीं होती। हम बैठे-बैठे भी यहाँ से वहाँ जा सकते हैं या पहुँच जाते हैं। इस आवाजाही का माध्यम कोई उपकरण या वाहन उतना नहीं होता जितना, मनुष्य का सम्भवतः सब से क्रान्तिकारी आविष्कार, भाषा । हम जो भी कर रहे हों, भाषा से जूझ रहे हों या कि उससे खेल रहे हों या कि उसमें अन्तर्भुक्त मौन को सुनने-पकड़ने का अभिशप्त यत्न कर रहे हों, भाषा हमें यहाँ से वहाँ ले जा रही होती है। एक स्तर पर भाषा में सब कुछ सम्भव है : दूसरे स्तर पर बहुत कुछ है जो भाषा में असम्भव है। सम्भव से असम्भव की यात्रा भी, एक गहरे अर्थ में, यहाँ से वहाँ जाना है।

यह संचयन एक तरह से एक लेखक की ऐसी ही अटपटी यात्रा की लॉगबुक जैसी है पर ऐसी जो अकसर यात्रा के कई दिनों बाद, यानी यथा समय नहीं, लिखी गयी है। उसमें स्मृतियाँ, संस्मरण, तात्कालिक प्रतिक्रियाएँ, जब-तब उभरे विचार, मेल-मुलाकात आदि सभी अंकित होते रहे हैं।.....

('भूमिका' से)

अशोक वाजपेयी (Ashok Vajpeyi)

अशोक वाजपेयी पचास वर्ष से अधिक कविता में सक्रिय रहे हैं और आज हिन्दी कविता में उनकी अलग और रोशन जगह है। अपने को 'संसार का गुणगायक' और कविता का निर्लज्ज पक्षधर कहनेवाले इस कवि ने घर-परिवार, प्रकृ

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