अपना वाला स्कूल -
'अपना वाला स्कूल' एक कहानी संग्रह है जिसकी कहानियाँ स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न समयों पर प्रकाशित और प्रशंसित होती रही हैं।
इस संग्रह की सहज-सरल भाषा तथा सांकेतिक शैली पाठक को बाँधती है और कथ्य किसी ऐसे अनुभव को उद्घाटित करता है, जो सामान्य जीवन का अंग होते हुए भी अनुभूति तथा अभिव्यक्ति की तीव्रता के कारण असाधारण बन जाता है। इस प्रक्रिया के चलते कहानीकार ने एक से एक अद्भुत पात्रों की सृष्टि की है। 'तीन शब्द' की दीपा हो या फिर 'वे लिफ़ाफ़े' की अलका, वे रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में मिलने वाली साधारण महिलाएँ हैं लेकिन लेखिका की संवेदना उन्हें ऐसी गरिमा प्रदान करती है कि पाठक उनके साथ एक आत्मीय रिश्ते में बँध जाता है और उसे उनका दुःख-सुख अपना दुःख-सुख लगने लगता है।
मध्यमवर्गीय दाम्पत्य जीवन पर कहानीकार की गहरी पकड़ है और उस जीवन के बहुत ही सलोने चित्र उनकी कहानियों में उभरे हैं। उनकी कहानियों का व्यंग्य भी कटु नहीं, मधुर है। वह खरोंचता नहीं, गुदगुदाता है और स्थायी प्रभाव छोड़ जाता है।
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