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‘आग के पास आलिस है यह’ (नोबेल पुरस्कार 2023 से सम्मानित साहित्य)
फ़्योर्ड के तट से कुछ ही दूर अपने पुराने घर में सिग्ने बेंच पर लेटी है और ख़ुद के उस रूप को लरज़ते देखती है जो बीस साल से भी पहले कभी उस घर में था। खिड़की के पास खड़े वह अपने उस रूप को देखती है जो ढलते नवम्बर के एक दिन अपने पति आस्ले की राह देख रहा है। आस्ले बरसों पहले अपनी चप्पू-नाव लेकर पानी में गया था और फिर लौट कर नहीं आया और सिग्ने ख़ुद को प्रतीक्षा के अन्तहीन क्षणों में लगातार घुलते हुए देखती है। सिग्ने की स्मृतियाँ फैलकर उनके समूचे जीवन को सहेज लेती हैं, लेकिन उससे भी परे अभी तक घर में लरज़ रही पाँच पीढ़ियों के प्रेम और त्रासदी की गाथा को भी जिसमें आस्ले की पड़-पड़दादी आलिस भी शरीक़ है। सिग्ने को दिखतीं ये पाँचों पीढ़ियाँ निर्मम प्रकृति के साथ लगातार संवादरत भी हैं और जूझ भी रही हैं। यून फुस्से का फड़फड़ाता और सम्मोहक गद्य जो भाषा के क़रीब-क़रीब हाँफ रहे प्रवाह को मन्त्रोच्चार का चरित्र प्रदान करता है, हिन्दी के पाठक के लिए एक अनूठा अनुभव होने जा रहा है। काल में छितराये पाँच पीढ़ियों के कुछ कठिन और मार्मिक क्षण एक साथ घटते हैं, एक दूसरे से गुँथे हुए, और अतीत के प्रेत जीवित लोगों के साथ टकराते हुए चल-फिर रहे हैं, एक ही खूँटी पर अपने कपड़े टाँगते हुए। ‘आग के पास आलिस है यह’ कभी न विस्मृत होने वाले प्रेम की टोह लेती एक ऐसी दुर्लभ कृति है जिसे प्रेम और अभाव पर मनन करते पाठों में एक ऊँचा दर्जा प्राप्त हुआ है।
“अजीब ही सम्मोहन है इस उपन्यास के पाठ में।"
- लूसी पोपेस्कु
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