कवि श्री सुधाकर पाठक के इस कविता संग्रह की खूबी है जिन्दगी के साथ इसका जुड़ाव, जिन्दगी के बारे में इसका नज़रिया, इंसानी जिन्दगी की कमजोरियाँ, इंसानी ज़िन्दगी की मजबूतियाँ, इंसानी जिन्दगी के इन्द्रधनुषी रंग, जिन्दगी के सपने और यथार्थ ! यानी जिन्दगी से जुड़े वे तमाम पहलू जिनके बारे में हर इंसान कभी कुछ सोचता है, मन में महसूस करता है, और जिन्हें जीता है। ऐसे तमाम बिम्बों, चित्रों और सपनों को यथार्थ की कठोर धरती से जोड़ते हुए कवि ने इंसानी जिन्दगी की एक स्याह- सफ़ेद तस्वीर इस कविता संग्रह के माध्यम से प्रस्तुत की है।
कहा जाता रहा है कि सरल लिखना बड़ा कठिन होता है। सरल भाषा में अपनी अनुभूति को वही शब्द दे पाता है जो हृदय से कवि होता है, केवल कवि ! न किसी विधा के वाद विशेष के प्रति पूर्वाग्रह और न स्वयं को बुद्धिजीवी प्रमाणित करने का कसरती दुराग्रह ! मुक्त काव्य-सलिला में, हृदय की उन्मुक्त जीवन-धारा का अबाध प्रवाह ! उन्मुक्त गति और कड़वे-मीठे क्षणों का आलोड़न ! मंथर गति से बहती यह काव्य धारा कई जगह अनायास मन के ओने-कोने को भिगो जाती है। कवि की रचनाओं में ज़िन्दगी से कहीं शिकायत, कहीं समाज के दमघोंटू नियम-कायदों के प्रति तीखा विरोध, तो कभी अपने बनाये रास्ते पर चलकर जीवन जीने की ललक, नियत किये गये रास्तों के प्रति विद्रोह और अपने मापदंडों के प्रति कवि का आत्मविश्वास कहीं-कहीं जिन्दगी को चुनौती देता दिखाई देता है।
कवि सुधाकर पाठक की रचनाओं में उनके भीतर का सरल संवेदनशील कवि, जीवन की विविध त्रासदियों को झेलते हुए उन्हें सहजता से कविता के रूप में 'जस का तस' उकेरने में सफल रहा है। इस कविता संग्रह की अधिकांश रचनाएँ पाठकों को सोचने पर विवश करेंगी, विचारों को कहीं एक नयी सोच और नयी दिशा देंगी। यदि संग्रह की सारी कविताओं का सार संक्षेप में कहा जाये तो यही कहा जा सकता है कि यह मानवीय संवेदनाओं का ऐसा दर्पण है जिसमें हर कोई अपनी जिन्दगी को देख सकता है, पढ़ सकता है और उससे बहुत कुछ सीख सबक ले सकता है।
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