Aleksxander Kuprin

अलेक्सांद्र कुप्रीन (1870-1938) का जन्म रूस में एक मंझोले सरकारी अफ़सर पिता और एक भूतपूर्व अमीर घराने की शहज़ादी माँ के घर में हुआ। कुप्रीन पेशे से पायलट, यायावर और लेखक थे। उनका लेखन साधारण लोगों के जीवन को केन्द्र में रख कर किया गया है। उनकी कहानियों को रूस की सभी पीढ़ियों-टॉलस्टॉय, गोर्की, चेखव, बुनिन सहित-के लेखकों ने सराहा। टॉलस्टॉय ने तो उन्हें चेखव का उत्तराधिकारी भी घोषित किया। रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से विषय उठाने वाले कुप्रीन का स्वयं का जीवन भी कम घटनाशील नहीं था। उन्होंने वेश्याओं की संगत की और उन पर एक विवादास्पद उपन्यास लिखा। उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में मलोच, ओलेस्या, रत्न-कंगन आदि हैं। सन् 1919 में बोल्शेविक क्रान्ति के दौरान कुप्रीन देश छोड़ कर फ्रांस चले गये और अगले 17 साल वहीं रहे। सन् 1937 में अपनी मृत्यु से केवल एक वर्ष पहले वह रूस वापस लौटे, जब स्तालिन राज अपने चरम पर था। आज कुप्रीन रूस के सबसे अधिक पढ़े जाने वाले लेखकों में से हैं। रूसी वैज्ञानिकों ने अपनी खोज के एक तारे का नाम भी कुप्रीन पर रखा है।


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