Dr. Sudhir Aazad

डॉ. सुधीर आज़ाद - एक नौजवान फ़िल्मकार, लेखक, गीतकार और प्रखर वक्ता, इन सबके बीच डॉ. सुधीर आज़ाद बुनियादी तौर पर संजीदा शायर हैं, ज़िन्दगी और उसके दायरे के दरम्यान बिखरे लम्हात को महसूसने और बयान करने का उनका हुनर उन्हें हर क़िस्म के शेड्स की लिखने की तौफ़ीक़ देता है। 'नदी, मैं तुम्हें रुकने नहीं दूंगा' कविता संग्रह उनकी इन्हीं संवेदनाओं का समुच्चय है। वक़्त की तेज़ रफ़्तार में लम्हों का अहसास लिखने का हुनर उनकी लिखावट को दिल के क़रीब से न सिर्फ गुज़ारता है बल्कि उसकी सख़्त हक़ीक़त वाली चट्टानों पर दूब सरीखा सब कुछ पुख़्ता बयान कर जाता है। उनकी कविताएँ कहती-सुनती लगती है और साथ लेकर चलती हुई हमसफ़र सी लगती है। अपने पहले ही उपन्यास 'भोपाल : सहर बस सुबह तक' की कामयाबी उन्हें एक बेहतरीन अफ़सानानिगार की शक्ल में हमारे सामने लाती है; किताब की कामयाबी यह है कि इसका तजुर्मा इंग्लिश में भी हुआ है और इस पर फ़िल्म भी आयेगी। उनकी 'पानी नहीं है' डॉक्युमेंट्री इस किताब की ज़मीन कही जा सकती है जो जल की वैश्विक समस्या का स्वर है। लोक-संस्कृति और नारी केन्द्रित 'ब्याह' उनकी पहली फ़ीचर फ़िल्म है, जो इस वर्ष आ रही है। भोपाल गैस त्रासदी उनकी संवेदनाओं में कहीं गहरी उतरी हुई अनुभूत होती है और इसलिए उन्होंने अपने हर मुमकिन एरियास में इस पर काम किया है। सुधीर आज़ाद ने भोपाल गैस त्रासदी पर अपनी बेहद प्रामाणिक डॉक्युमेंट्री फ़िल्म 'TANK No. 610...Extended Version' भी बनायी है। उन्हें हाल ही में अपनी शार्ट फ़िल्म 'द लास्टवुड' के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सराहना प्राप्त हुई है। अब तक 'द लास्टवुड' का चयन लगभग 57 अन्तर्राष्ट्रीय फेस्टिवल्स में चयन हो चुका है।

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