Samres Basu Kalkoot
समरेश बसु 'कालकूट' -
ढाका (आधनिक बांग्ला देश) में जन्मे समरेश (बचपन का नाम सुरतनाथ) बसु के तेवर शुरू से ही चुनौती भरे रहे हैं। और शायद इसी कारण वह नाम जो उन्होंने स्वयं को स्वयं दिया- 'कालकूट', बांग्ला-साहित्य में दूसरों के दिये नाम से अधिक चला।
औपचारिक पढ़ाई ठीक से की नहीं। एक फैक्टरी में नौकरी की, वह भी गयी राजनीतिक कारणों से जेल जाने के परिणामस्वरूप। बस तभी से अपना लिया बंजारा जीवन। जो देखा, जो भोगा, उसी का लेखा-जोखा पूरी सच्चाई और तीव्रता के साथ पाठकों के सामने रख दिया। वह भी कोई 200 कहानियों और 120 उपन्यासों के रूप में। कहीं कोई झूठ नहीं, बनावट नहीं। बुनावट बेमिसाल।
साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित 'कालकूट' आजीवन कलकत्ता की विभिन्न साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़े रहे और अपनी कृतियों के माध्यम से मानव-मन की विकृतियों को रूपायित/रेखांकित करते रहे।