Shivaprasad Singh
शिवप्रसाद सिंह -
डॉ. शिवप्रसाद सिंह का जन्म 19 अगस्त, 1928 को बनारस के जलालपुर गाँव में एक ज़मींदार परिवार में हुआ था।
1949 में उदय प्रताप कॉलेज से इंटरमीडिएट तक की शिक्षा ग्रहण कर शिवप्रसाद जी ने 1951 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.ए. और 1953 में हिन्दी में प्रथम श्रेणी में एम.ए. किया था। स्वर्ण पदक विजेता डॉ. शिवप्रसाद सिंह ने एम.ए. में 'कीर्तिलता और अवहट्ठ भाषा' पर लघु शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया। उसकी प्रशंसा राहुल सांकृत्यायन और डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने की थी। हालाँकि वे द्विवेदी जी के प्रारम्भ से ही प्रिय शिष्यों में थे, किन्तु उसके पश्चात् द्विवेदी जी का विशेष प्यार उन्हें मिलने लगा। द्विवेदी जी के निर्देशन में उन्होंने 'सूर पूर्व ब्रजभाषा और उसका साहित्य' विषय पर शोध सम्पन्न किया, जो अपने प्रकार का उत्कृष्ट और मौलिक कार्य था।
अपने पुश्तैनी ज़मींदारी वैभव की चर्चा वे अक्सर किया करते लेकिन उस वातावरण से असम्पृक्त बिल्कुल पृथक् संस्कारों में उनका विकास हुआ। उनके विकास में उनकी दादी माँ, पिता और माँ का विशेष योगदान रहा, इस बात की चर्चा वे प्रायः करते थे। दादी माँ की अक्षुण्ण स्मृति अन्त तक उनके ज़ेहन में रही और यह उसी का प्रभाव था कि उनकी पहली कहानी भी 'दादी माँ' थी जिससे हिन्दी कहानी को नया आयाम मिला। 'दादी माँ' से नयी कहानी का प्रवर्तन स्वीकार किया गया और यही नहीं, यही वह कहानी थी जिसे पहली आंचलिक कहानी होने का गौरव भी प्राप्त हुआ। तब तक रेणु का आंचलिकता के क्षेत्र में आविर्भाव नहीं हुआ था। बाद में डॉ. शिवप्रसाद सिंह ने अपनी कहानियों में आंचलिकता के जो प्रयोग किये वह प्रेमचन्द और रेणु से पृथक् थे। एक प्रकार से दोनों के मध्य का मार्ग था और यही कारण था कि उनकी कहानियाँ पाठकों को अधिक आकर्षित कर सकी थीं। इसे विडम्बना कहा जा सकता है कि जिसकी रचनाओं को साहित्य की नयी धारा के प्रवर्तन का श्रेय मिला हो, उसने किसी भी आन्दोलन से अपने को नहीं जोड़ा। वे स्वतन्त्र एवं अपने ढंग के लेखन में व्यस्त रहे।