Shamsurrahman Faruqi
शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी -
शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी का जन्म 30 सितम्बर, 1935 को हुआ। आपने 1955 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया। शोध; आलोचना; इतिहास; कविता; कहानी; उपन्यास; कोशनिर्माण; दास्तान; छन्दशास्त्र जैसी साहित्य की तमाम विधाओं में आपने तवारीख़ी कारनामे अंजाम दिये हैं। उर्दू जगत में बड़ा आधुनिक मोड़ लानेवाली मासिक पत्रिका 'शबाख़ून' का आपने चार दशक तक सम्पादन-प्रकाशन किया। आधुनिक युग के एक बड़े साहित्यचिन्तक के रूप में तो आपकी प्रतिष्ठा निर्विवाद रही है लेकिन 2006 में सामने आया आपका उपन्यास 'कई चाँद थे सरे आसमाँ' उर्दू के साथ-साथ हिन्दी के लिए भी एक परिघटना साबित हुआ। इस पुस्तक के प्रभाव की तुलना मीर तक़ी मीर पर 1992 से 94 के बीच चार खण्डों में प्रकाशित आपकी मशहूर कृति 'शेर-ए-शोरअंगेज़ से ही की जा सकती है। इस किताब के लिए लेखक को 1996 में उपमहाद्वीप के सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मानों में से एक सरस्वती सम्मान प्राप्त हुआ था। 'शेर', 'ग़ैर शेर और नम्र', 'उर्दू का इब्तिदाई ज़माना' तथा 'सवार और दूसरे अफ़साने' आपकी अन्य ख्यातिलब्ध पुस्तकें हैं। भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने 'पद्मश्री' और 'निशाने इम्तियाज़' जैसे खिताबों से नवाज़ कर आपके प्रति आभार जताया है।
फ़िलहाल आप इलाहाबाद में रहते हुए कोशनिर्माण और दास्तान के इलाक़े में अपनी बृहद् योजनाओं को कार्यरूप देने में व्यस्त हैं।
कृष्णमोहन (सम्पादक)
विगत दो दशक से आलोचना; अनुवाद; और सम्पादन के क्षेत्र में सक्रिय प्रमुख कृतियाँ–'मुक्तिबोध: स्वप्न और संघर्ष', 'आधुनिकता और उपनिवेश', 'कहानी समय' और 'आईनाख़ाना'। सुधीर कक्कड़ के उपन्यास 'द एसेटिक ऑफ़ डिज़ायर' का अनुवाद ' कामयोगी' के नाम से किया जिसे 2002 का सहित्य अकादेमी सम्मान भी प्राप्त हुआ। डेल कार्नेगी की पुस्तक का अनुवाद 'अब्राहम लिंकन: एक अनजानी शख़्सियत' नाम से शीघ्र प्रकाश्य। सम्पादन में इससे पहले शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी की एक अन्य किताब 'उर्दू का इब्तिदाई ज़माना' के अनुवाद का सम्पादन। यह किताब हिन्दी में 'उर्दू का आरम्भिक युग' नाम से प्रकाशित। इसके अलावा आलोचना की अनियतकालिक पत्रिका 'परख' के कुल चार अंकों का सम्पादन व प्रकाशन। फ़िलहाल बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अध्यापन।