Rakesh Kabeer
राकेश कबीर एक युवा कवि, कहानीकार और लेखक हैं। उनकी कविताएँ, कहानियाँ और लेख हिन्दी और अंग्रेज़ी की अनेक पत्र और पत्रिकाओं में प्रकाशित और चर्चित होती रही हैं। उनकी कविताओं में जल, जंगल और ज़मीन तथा उससे जुड़े आमजन की चिन्ता के साथ सामाजिक अन्याय, पाखण्ड और रूढ़िवाद का तीव्र विरोध मिलता है। उनका जन्म सन् 1984 में उत्तर प्रदेश के महराजगंज जनपद के एक गाँव में किसान परिवार में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में प्राप्त करने के बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए राजकीय इण्टर कॉलेज, गोरखपुर चले गये। गोरखपुर विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र विषय में मास्टर डिग्री प्राप्त करने के बाद राकेश कबीर ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली में प्रवेश लिया जहाँ से उन्होंने 'प्रवासी भारतीयों का सिनेमाई चित्रण' विषय पर एम. फिल. तथा 'ग्रामीण सामाजिक संरचना में निरन्तरता और परिवर्तन' विषय पर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उनके तीन काव्य संग्रह 'नदियाँ बहती रहेंगी', 'कुँवरवर्ती कैसे बहे' एवं 'नदियाँ ही राह बताएँगी' प्रकाशित हो चुके हैं। राकेश कबीर भारतीय सिनेमा के भी गम्भीर अध्येता हैं और उनकी 'सिनेमा को पढ़ते हुए' शीर्षक किताब तथा 'चिलम चौक का बादशाह' नाम से उपन्यास शीघ्र प्रकाश्य है। इतिहास, समाज और संस्कृति के विभिन्न आयामों पर उनकी गहरी दिलचस्पी है जिसको उनकी रचनाओं में साफ-साफ महसूस किया जा सकता है।