Afzal Ahmed Syed

अफ़ज़ल अहमद सैयद

बँटवारे से महज़ एक साल पहले 1946 में उत्तर प्रदेश के ज़िला गाजीपुर में जन्मे अफ़ज़ाल अहमद ने शायरी शुरू की तो पढ़ने वालों के ज़ेहन-ओ-दिल को झंझोड़कर रख दिया। क्लासिकल और जदीद शायरी को एक साथ निभाती हुई इस शायरी की गूंज देखते-ही-देखते भारतीय उप-महाद्वीप की हदों को लाँघकर दुनिया भर के कोने-कोने में पहुँच गयी।
1984 में नज़्मों का पहला संग्रह ‘छीनी हुई तारीख़', 1988 में ग़ज़ल संग्रह अफ़ज़ाल अहमद सैयद 'खेमा-ए-सियाह', 1990 में दो ज़बानों में सज़ा-ए-मौत' (नज़्में) प्रकाशित हुए। 1988 में उनकी कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद 'Rocco and other worlds' मंज़र-ए-आम पर आया। हिन्दी में सबसे पहले अफ़ज़ाल अहमद को हिन्दी के पाठकों तक पहुँचाने का श्रेय प्रसिद्ध हिन्दी पत्रिका 'पहल' को है। 1992 में प्रसिद्ध कवि-आलोचक विजय कुमार की मेहनत के नतीजे में 'पहल पुस्तिका' सीरीज़ में 'शायरी मैंने ईजाद की' के नाम से प्रकाशित हुई। प्रस्तुत पुस्तक 'हमें बहुत सारे फूल चाहिये', अफ़जाल अहमद सैयद के भरपूर सहयोग और भागीदारी के साथ कवि-पत्रकार-लेखक राजकुमार केसवानी ने तैयार की है। सम्प्रति : अफ़ज़ाल अहमद कराची (पाकिस्तान) की हबीब यूनिवर्सिटी में कीटशास्त्र पढ़ा रहे हैं।

1947 के बँटवारे के बाद आकर भोपाल में बसे एक सिन्धी परिवार में राजकुमार केसवानी का जन्म 26 नवम्बर 1950 को हुआ। इधर-उधर के भटकाव के बाद अख़बारनवीसी का आग़ाज़ हुआ लेकिन पहचान की वजह बनी 1984 की गैस त्रासदी, जिसमें हज़ारों बेगुनाह इंसानों की मौत हई । गैस त्रासदी से पहले ही 1982 से 1984 तक लगातार इस ख़तरे की चेतावनी देती रिपोर्ट्स के लिए 1985 में पत्रकारिता का सर्वोच्च सम्मान बी.डी. गोयनका अवार्ड और अन्य कई पुरस्कार
मिले। एनडीटीवी में मध्य प्रदेश के ब्यूरो चीफ़ (1998 से 2003), फ़रवरी 2003 से दैनिक भास्कर, इन्दौर संस्करण के सम्पादक और नवम्बर 2004 से भास्कर समूह में ही सम्पादक (मैगजींस) के पद पर अगस्त 2009 तक कार्यरत रहे। वर्ष 2006 में पहला कविता संग्रह 'बाकी बचे जो, 2007 में दूसरा संग्रह 'सातवाँ दरवाजा' तथा 2008 में 13वीं शताब्दी के महान सूफ़ी सन्त-कवि मौलाना जलालूद्दीन रूमी की फ़ारसी कविताओं का हिन्दुस्तानी में अनुवाद ‘जहान-ए-रूमी' के नाम से प्रकाशित। 2010 में संगीत और सिनेमा पर केन्द्रित पुस्तक 'बॉम्बे टॉकी' भी प्रकाशित है। उपन्यास 'बाजे वाली गली' और 'दास्तान-ए-मुग़ल-ए-आज़म' शीघ्र प्रकाश्य है।

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