Lala Shrinivas Das
लाला श्रीनिवास दास (1850-1887)
हिन्दी गद्य के आरम्भिक निर्माताओं में मथुरा निवासी लाला श्रीनिवास दास का प्रमुख स्थान है। वे भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के समकालीन थे। अपने अत्यल्प जीवन में इन्होंने कुल पाँच रचनाएँ लिखीं चार नाटक और एक उपन्यास ।
1882 में लाला श्रीनिवास दास का महत्त्वपूर्ण उपन्यास ‘परीक्षा गुरु' प्रकाशित हुआ, जो अब तक हिन्दी का प्रथम उपन्यास कहा जाता है।
श्रीनिवास दास प्रतिभाशाली और मेधावी लेखक थे। रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है कि “चारों लेखकों में ( हरिश्चन्द्र, प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, बदरीनारायण चौधरी) प्रतिभाशालियों का मनमौजीपन था, पर लाला श्रीनिवास दास व्यवहार में दक्ष और संसार का ऊँचा-नीचा समझने वाले पुरुष थे, अतः उनकी भाषा संयत और साफ़-सुथरी तथा रचना बहुत कुछ सोद्देश्य होती थी।"
श्रीनिवास दास न केवल उच्च कोटि के प्रतिभा-सम्पन्न विचारवान लेखक थे, जिन्होंने निश्चित उद्देश्य और प्रयोजन को दृष्टि में रख कर सम्पन्न भावानुभूति के बल पर नाना प्रकार की परिस्थितियों और चरित्रों की सृष्टि की, बल्कि वे एक अच्छे शैलीकार और सुलझी हुई भाषा लिखने वाले भी थे। उनके समय में खड़ी बोली का जो रूप प्रचलित था, वह बहुत कुछ अव्यवस्थित था। खड़ी बोली में एकरूपता का पूरा अभाव था। लाला जी ने दिल्ली के आस-पास की भाषा को स्टैंडर्ड मान कर उसी में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं । उनकी रचनाओं में संस्कृत अथवा फारसी अरबी के कठिन शब्दों की बनाई हुई भाषा के बदले दिल्ली के रहने वालों की साधारण बोलचाल पर ज़्यादा दृष्टि रखी गयी है।