Dhirendra Singh Jafa

सन् 1935 में उत्तर प्रदेश में जन्मे धीरेन्द्र सिंह जफ़ा ने वायुसेना में फ़ाइटर पायलट के रूप में भारत-पाक युद्धों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। 1971 के युद्ध में वीरता के लिए उन्हें 'वीर चक्र' से अलंकृत किया गया। फ़ाइटर पायलट्स के युद्ध के अनुभवों एवं क्रिया-कलापों को उन्होंने अपनी पुस्तक 'मृत्यु कष्टदायी न थी' में लेख-बद्ध किया जो अपने आप में युवाओं के लिए देश-सेवा की भावनाओं का अद्भुत प्रेरणा-स्रोत है।
अवकाश-प्राप्ति के बाद फ़ैज़ाबाद में निवास करते हुए ‘सियाराम' में उनकी आस्था विकसित हुई। 4 जनवरी 1984 के रामलला प्रकटोत्सव समारोह का संचालन अयोध्यावासियों ने उन्हें सौंपा था। उनके नेतृत्व में पहली बार विवादित ढाँचे के बीच वाले बुर्ज़ पर हनुमान पताका फहराई गयी। इसके अलावा गर्भगृह में पहली बार हवन किया गया जिसमें अयोध्या के सारे प्रमुख सन्त- महन्त उपस्थित थे। इन दो कार्यों की ख़बर जंगल में आग जैसी फैली और एक अभूतपूर्व जन-सैलाब उस दिन की शोभा यात्रा में उमड़कर सामने आया। इससे प्रेरणा लेकर अन्य हिन्दू संगठन रामलला की मुक्ति के लिए मैदान में आये। अपने सामाजिक जीवन में सन् 1989 के अयोध्या-फैजाबाद के साम्प्रदायिक तनाव में अमन-चैन की दिशा में उनके प्रयासों को भारत के उप-राष्ट्रपति द्वारा सराहा गया एवं उन्हें 'समाज रत्न' की उपाधि से सुशोभित किया गया।

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