मैं सिर्फ़ इतना ही पता कर सकी कि मेरी माँ अनुभा कौशल एक समृद्ध ज़मींदार की बेटी थी, जिन्हें मेडिकल पढ़ने के दौरान एंक विजातीय मनुष्य से प्रेम हो गया था । पिता ने उनका यह प्रेम स्वीकार नहीं किया और वे अपने पिता की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ मेरे पिता समर्थ कौशल से ब्याह करके कहीं और जाकर बस गयीं फिर उन दोनों में अलगाव हुआ और मेरी माँ मुझे लेकर अलग रहने चली आयीं। स्वतन्त्र भारत में ज़मींदारी नहीं बची। उससे जमा किये गये धन का भी धीरे-धीरे नाश हो गया। जब तक माँ वापस अपने घर आयीं, उनकी माँ की मृत्यु हो गयी थी । पिता ने तब भी उन्हें स्वीकार नहीं किया । फिर कुछ दिन बाद किसी दुर्घटना में वह भी चल बसे । ठाकुर साहब के जाने के बाद उनका घर खँडहर बन गया। रिश्तेदार बची-खुची सम्पत्ति हड़प गये। मुझे यही कहानी बतायी गयी थी । इससे अधिक कुछ भी मुझे मालूम नहीं था ।
- इसी पुस्तक का एक अंश
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