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यह संग्रह सुरेन्द्र वर्मा के तेज़ धारदार व्यंग्य निबन्धों का संग्रह है। शायद यहीं यह कैफ़ियत भी जरूरी है कि एक प्रख्यात नाटककार, उपन्यासकार और कहानीकार के 'व्यंग्य' के क्षेत्र में घुसपैठ करने की मजबूरी महज़ इसलिए बनी कि यह विधा आज की ज़िन्दगी की नब्ज़ पर अंगुली रखने का एक सक्षम माध्यम है।
जहाँ बारिश न हो के व्यंग्य निबन्धों में समकालीन ज़िन्दगी की बहुआयामी विसंगतियों और विद्रूपताओं की बहुरूपी छवियाँ हैं, बिल्कुल नये तेवर और नयी भंगिमा के साथ छेड़छाड़ है : जिनके माध्यम से आप न सिर्फ़ अपने को बल्कि अपने आसपास को भी देख- टटोल सकते हैं- कभी हँसते हुए और कभी लाचारियों पर खीझते हुए!-
-बहरहाल, जहाँ वारिश न हो एक महत्त्वपूर्ण व्यंग्य-कृति है : पठनीय और संग्रहणीय भी।
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