योगिता यादव का नाम आज हिन्दी साहित्य में न नया है और न अनजाना। पढ़ने में ये कहानियाँ सरल भाषा की डगर पर ही चलती हैं। मेरे लिये यह सुकून का विषय रहा कि कहानियों के जरिये लेखकों और लेखिकाओं के फैलाये विशिष्ट वाग्जाल से बची और कहानियाँ सरलता के साथ पढ़ पायी। यह सब मैं अपने लिये ही नहीं कह रही, यहाँ मुझे उन पाठकों का ध्यान है जो लेखक की विद्वता को देखकर भ्रमित हो जाते हैं और क्लिष्ट दुरूह भाषा से सहमकर किताब परे रख देते हैं। शिल्प की लाख दुहाइयाँ देते रहिये, ज्यादातर पाठक भाषा की सादगी और कहन के साधारणीकरण के बस में रहते हैं। मुझे लगता है, विसंगति और विरोधाभास, द्वन्द्व और संघर्ष के इस समय में ग़लत पते की चिट्ठियाँ सही पतों पर पहुंचेंगी और अपना सार्थक सन्देश पहुँचायेंगी।
- मैत्रेयी पुष्पा, वरिष्ठ कथाकार
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