समाज धन - (सामाजिक जीवन की कहानियाँ) - लेखक समाज परिवेश से उदास नहीं होता, वह समाज में व्याप्त कुरीतियों में ही अपनी राह बना लेता है। इसी तरह धन्यकुमार बिराजदार ने भी एक ओर समस्याओं को देखा है तो उनका समाधान देने का प्रयास भी किया है। संक्षेप में यही कह सकता हूँ कि 'समाज धन' कथा संग्रह में बाल विमर्श, नारी विमर्श, वृद्ध विमर्श, किसान विमर्श के साथ-साथ समाज की आपाधापी माथापच्ची का चित्रण कर उनका समाधान ढूँढ़ते हुए उपेक्षितों के जीवन में प्राण फूँकने का गरिमामयी प्रयास किया है। विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि कथा संग्रह को समाज से प्राप्त अनुभूति की अभिव्यक्ति के फलस्वरूप 'समाज धन' शीर्षक दिया है जो सार्थक नज़र आता है। धन्यकुमार जिनपाल बिराजदार के अन्य ग्रन्थों की तरह यह कहानी संग्रह पाठकों के लिए धन ही साबित होगा। आशा करता हूँ कि पाठक इस कहानी संग्रह का अध्ययन करते हुए इस पर शोधकार्य भी करेंगे। एक स्वागत योग्य पठनीय कृति।
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