पिघलेगी बर्फ़ - हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार कामतानाथ का नवीनतम उपन्यास है—'पिघलेगी बर्फ़'। इसमें एक ऐसे कथानायक का चित्रण है जो नियति के हाथों विवश होकर देश-विदेश की धूल छानने को मजबूर है। परिस्थितियाँ उसे लाहौर के ख़ूबसूरत बाज़ार से लेकर वर्मा और मलाया के जंगलों से होते हुए तिब्बत के बर्फ़ीले मैदानों तक ले जाती हैं। वहाँ तिब्बती युवती के प्रेम में पड़कर वह अपने सुखद भविष्य के सपने बुनता है, किन्तु इस प्रक्रिया में एक अछूती संस्कृति के क्रमिक विनाश का चश्मदीद गवाह बन जाता है। उसकी इस जोख़िम भरी जीवन-यात्रा में मौत उसे कितनी ही बार क़रीब से छूती हुई निकल जाती है। वापस अपने देश आकर वह बदली हुई स्थितियों के रू-ब-रू होता है—सब कुछ उसकी पहुँच के बाहर। अन्त में वह एक ऐसे तन्त्र का पुर्जा बनने लगता है जिसके तार भ्रष्ट राजनेताओं और अपराधियों से जुड़े होते हैं। जीने की विवशता और समय के थपेड़े आदमी को कहाँ से कहाँ ले जाते हैं, उपन्यास का मूल कथ्य यही है। कहना न होगा कि कामतानाथ के इस उपन्यास में अद्भुत कथारस है। कथानक का वैशिष्ट्य है इसकी मुहावरेदार भाषा-शैली और शिल्प। एक बार पुस्तक को प्रारम्भ करने के पश्चात् बिना अन्त तक पहुँचे पाठक के लिए उसे छोड़ना शायद मुश्किल हो!
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