ज्वाला और जल - 'ज्वाला और जल' हरिशंकर परसाई की आरम्भिक रचनाओं में से एक है जिसके केन्द्र में एक ऐसा युवक है जो समाज की निर्ममता के कारण धीरे-धीरे एक अमानवीय अस्तित्व के रूप में परिवर्तित हो जाता है। लेकिन प्रेम और सहानुभूति के सानिध्य में वह एक बार फिर कोमल मानवीय सम्बन्धों की ओर लौटता है। उपन्यासिका में फ़्लैश बैक का सटीक उपयोग हुआ है जिससे नायक विनोद के विषय में पाठकों की जिज्ञासा लगातार बनी रहती है। विनोद की कथा मानवीय स्थितियों से जूझते हुए एक अनाथ और आवारा बालक की हृदयस्पर्शी कथा है जिसे हरिशंकर परसाई की कालजयी क़लम ने एक ऐसी ऊँचाई दी है जो उस समय के हिन्दी साहित्य में दुर्लभ थी।
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