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Ghar Ka Aakhiri Kamra

Hardbound
Hindi
9789326350266
2nd
2014
148
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₹150.00

घर का आख़िरी कमरा - गुलशेर ख़ाँ शानी ने एक बार राजेन्द्र यादव और नामवर सिंह से शिकायती लहज़े में कहा था कि "हिन्दी में मुंशी प्रेमचन्द के बाद के हिन्दू लेखकों के पास मुस्लिम पात्र नहीं हैं", प्रस्तुत उपन्यास शानी की इस शिकायत को दूर करने का विनम्र प्रयास है। यह एक तरह से ओखली में सिर डालने जैसा था, क्योंकि आम मुस्लिम परिवार और हिन्दू परिवार में रहन-सहन सम्बन्धी मौलिक भिन्नताएँ होती हैं। मगर कल्याणी देवी मुस्लिम बहुल मोहल्ले में रहने के कारण लेखक का बचपन से ही मुस्लिम परिवारों से मेलजोल रहा है, इसलिए उन्हें उपन्यास लेखन में ज़्यादा कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा। एक तरह से यह उपन्यास लेखक के बृहत्तर जीवनानुभव का एक हिस्सा है। इसमें दो बातों पर विशेष ध्यान रखा गया। आज़ादी के बाद मुसलमानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में लगातार गिरावट आयी है। दूसरे, बाबरी मस्जिद विध्वंस ने मुस्लिम मनोविज्ञान को बहुत गहरे तक प्रभावित किया है। भारतीय युवा की कुछ ऐसी नियति रही है कि उसे प्रायः बेरोज़गारी का दंश झेलना पड़ता है। एक पढ़े-लिखे मुसलमान युवा की स्थिति तो और भी दयनीय होती है। अपने हुनर के कारण उसके संगी साथी किसी-न-किसी काम में लग जाते हैं और इस प्रकार वे पूरी तरह से बेरोज़गार नहीं होते। मगर एक पढ़े लिखे मुस्लिम बेरोज़गार का दर्द दोहरा होता है। लेखक ने इस उपन्यास के माध्यम से अपनी इसी बात को ठीक से रख पाने का प्रयास किया है।

प्रियदर्शन मालवीय (Priyadarshan Malviya)

प्रियदर्शन मालवीय- जन्म : 10 सितम्बर, 1958, इलाहाबाद (उ.प्र.)। शैक्षणिक योग्यता : स्नातक (इलाहाबाद वि.वि.)। सम्प्रति : उ.प्र. सरकार के परिवहन विभाग में वरिष्ठ अधिकारी। प्रकाशित रचनाएँ : 'सपना अपना अपना'

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