एक अपवित्र पेड़ - चीख़ की नोक पर टँगी आत्माएँ...ग्रीक माँसलता... गर्भगृहों के अन्धकार को चीरती नन्ही-सी लौ... वृक्ष से टूटकर गिरती पत्ती का नर्तन—ये सब प्रियंवद की कहानियों के स्वर हैं। जीवन की रहस्यमयताओं को खोलती-ढूँढ़ती ये कहानियाँ पाठक को धीरे-धीरे अवसाद, प्रेम, प्रकृति, मिथक, मानवीय मूल्यों और व्यवस्थाओं की क्रूर शोषक दुनिया में ले जाती हैं—धीरे-धीरे मन की एक-एक पर्त को खोलती और उसके एक-एक अँधेरे कोने को टटोलती हुई। प्रियंवद की इन कहानियों की भाषा में एक नयी चमक है—धीरे-धीरे खुलती एक कविता, गुनगुनाते छन्द की तरह। एक ठण्डा अवसाद भी वह पैदा करती है जो चुपचाप आत्मा पर पर्त-दर-पर्त चढ़ता जाता है। इस संग्रह में संकलित प्रियंवद की कहानियाँ उनकी परिपक्वता, संवेदनशीलता, कल्पना और मानवीय आस्था को उजागर करती हैं। प्रस्तुत है जीवन की विराटता को समेटे हुए अत्यन्त चर्चित और लोकप्रिय कथाकार प्रियवंद का यह महत्त्वपूर्ण कथा-संग्रह 'एक अवपित्र पेड़'।
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