भूलना - चन्दन पाण्डेय हिन्दी की युवतर कथापीढ़ी के प्रखर और प्रतिनिधि रचनाकार हैं। उनका पहला कहानी संग्रह 'भूलना' कहानी के अद्यतन परिदृश्य को कई तरह से समृद्ध करता है। चन्दन जिस देश-काल में साँस ले रहे हैं वह यान्त्रिकता और मानवीयता की भीषण प्रतिद्वन्द्विता से भरा हुआ है। गिरते हुए जीवन मूल्यों ने प्रतिरोध का जो मोर्चा बनाना आरम्भ किया है उसकी अचूक शिनाख्त 'भूलना' में देखी जा सकती है। कहना होगा कि समाज में चल रहे शक्ति-विमर्श पर लेखक की सतर्क दृष्टि है। अपनी कहानियों में चन्दन पाण्डेय अत्यन्त कठिन, दुरुह और नाज़ुक थीम उठाते हैं। उसका सांगोपांग विकास करते हुए भी अपनी रचनात्मक परिपक्वता से किसी को भी चकित कर देते हैं। यह कलात्मक इंटिग्रेटी' विरल है। चन्दन की कहानियाँ हर बार एक अबूझ रास्ते पर चल पड़ने का साहस है। शब्द चयन, वाक्य-रचना और अर्थ-निर्धारण पर चन्दन अपनी छाप छोड़ते चलते हैं। इनमें भाषा और शिल्प का जो टटकापन है उससे हिन्दी कहानी के नये मिजाज़ का भी पता चलता है। भारतीय ज्ञानपीठ के 'युवालेखन पुरस्कार' से सम्मानित यह कहानी-संग्रह 'भूलना' न भूलनेवाली कहानियों से भरापूरा है। सन्देह नहीं कि पाठक जगत में इस संग्रह की सामर्थ्य युवाशक्ति का प्रमाण बनकर उभरेगी।
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