भारतवर्ष में पैंतालीस साल - मेरी हिन्दी-यात्रा - भारत को समृद्ध संस्कृति और परम्परा को जानने समझने के लिए अनेक विदेशी भारत आते रहे हैं। साइजी माकिनो उन प्रवासियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं जिन्होंने भारतीय संस्कारों को न सिर्फ़ अपनाया बल्कि जापानी जीवन पद्धति, दर्शन और विचारों से भारतीयों को परिचित भी कराया। जीविका की तलाश में भारत आये साइजी माकिनो ने अपने जीवन के पैंतालीस वर्ष यहीं व्यतीत किये। भारत पहुँचने के पूर्व से शुरू हुई माकिनो की यह रोमांचक जीवन-यात्रा भारत की अनेक विभूतियों के सम्पर्क में आकर एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक यात्रा में परिणत हो गयी। आर्य नायकम, महात्मा गाँधी, विनोबा भावे, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, कृष्ण कृपलानी, पन्नालाल दास गुप्ता, हजारी प्रसाद द्विवेदी, पं. बनारसी दास चतुर्वेदी जैसे अनेक महापुरुषों के संग साथ ने साइजी माकिनो को भारतीयता के दर्शन से जिस तरह प्रभावित किया उसका परिचय इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक को विशिष्ट बना देता है। आत्मकथ्यात्मक शैली में लिखी इस पुस्तक में भारतीयता को जापानी दृष्टि से देखने का एक अन्य आयाम भी है। जूडो और जापानी परम्परा, जापान-भारत विनिमय का सेतु-बन्ध, शान्तिनिकेतन में गाँधी जी और बुद्ध का प्रभाव, तीन जापानी बौद्ध साधुओं का समागम, चम्बलघाटी में कृषि अध्यापकीय तथा विश्वभारती में जापानी अध्यापकीय जीवन और मणिपुर में एक और जापान जैसे अध्यायों में जापान और भारत की सभ्यता का दर्शन होता है। संसार को 'एक मानव-आत्मा' समझनेवाले ऐसे व्यक्तियों का उदार दृष्टिकोण जहाँ 'सर्व संस्कृति समभाव' के प्रति प्रेरित करेगा, वहीं 'विश्वग्राम' की आदर्श कल्पना से भी हमें नये सिरे से संस्कारित करने में सफल होगा, इस लेखन का उद्देश्य है।
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