अलग अलग दीवारें - 'अलग अलग दीवारें' सुमति सक्सेना लाल का पहला कहानी-संग्रह है। सुमति की कहानियों में बहुआयामी जीवनानुभव समाहित हैं। उन्होंने जो चरित्र गढ़े हैं वे समाज में कहीं भी देखे जा सकते हैं। इन चरित्रों के द्वारा सुमति विचारों-आस्थाओं तथा अवधारणाओं में आ रहे परिवर्तनों को प्रकट करती हैं। परम्परागत शब्दावली में कहें तो सुमति सक्सेना लाल की कहानियाँ चरित्र प्रधान हैं। सुमति के इस कहानी संग्रह के सूत्र उस समाज में बिखरे हैं जो शिक्षित है और एक नवीन जीवन-पथ का अन्वेषण कर रहा है। 'दूसरी बार न्याय', 'विस्थापित', 'सलीब अपने अपने', 'कवच', 'दंश', 'द्रष्टा', 'दण्ड मुक्ति' और 'अलग अलग दीवारें' कहानियाँ जिन जीवन मूल्यों का समर्थन करती हैं, वे मनुष्यता के उदात्त स्वभाव से सम्बद्ध हैं। इन कहानियों का यथार्थ अधिकतर नारी-जीवन की विसंगतियों पर प्रकाश डालता है। ...अर्थात् स्वीकार और नकार के द्वन्द्व में उलझा जीवन किसी भी निर्णय तक पहुँचने से पहले आत्मसंघर्ष की जटिल प्रक्रिया से गुज़रता है। 'विस्थापित' कहानी में सुमति लिखती हैं, '...पर सिर्फ़ प्यार से ही तो ज़िन्दगी सँवर नहीं जाती। ...प्यार तो कभी-कभी गले में पड़ा हुआ फन्दा भी हो सकता है। ...पूरी साँस लेने के लिए ऐसे में कहीं चला जाये इन्सान ...पर कैसे?' सुमति अपनी सहज-सरल भाषा शैली में जीवन के सुख-दुख को शब्दांकित करती हैं। यह कहानी-संग्रह मर्मस्पर्शी मनःस्थितियों के सार्थक चित्रण के कारण पाठकों को प्रभावित करेगा ऐसा विश्वास है।
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review