अब्बू ने कहा था - हिन्दी की प्रसिद्ध कथाकार चन्द्रकान्ता की कहानियाँ कश्मीर पर केन्द्रित न हों, ऐसा सम्भव नहीं है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे सिर्फ़ कश्मीरियों के दुःख-दर्द का बयान करती हैं, उनकी कहानियाँ चेतना के कई रूपों को अनावृत कर विस्तृत आयाम देती हैं। वे उत्तर-आधुनिकता के विश्वव्यापी संकटों पर भी मुखर रही हैं। इन कहानियों में जहाँ भूमण्डलीकरण की अन्धी दौड़ में बहुत ज़्यादा बटोरने की ख़्वाहिशों में अपनों से कटने और सम्बन्धों के करुण क्षय की व्यथा है वहीं एक ऐसी आत्मीय छुअन भी है, जो अन्तर्मन के द्वन्द्व भरे सन्ताप की प्रतीति कराती है। स्वभाव से संवेदनशील होने के नाते चन्द्रकान्ता अपनी इन रचनाओं में लगातार उन प्रवृत्तियों से जूझती हैं जो मनुष्य को आतंक के तहख़ाने में क़ैद करती हैं और लगातार पाश्विकता में लिप्त रहती हैं। वे उन बिन्दुओं को भी चिह्नित करती हैं, जिनके ख़तरों को समझकर मनुष्यता को बोझिल होने से बचाया जा सकता है; आत्मीयता और करुणा का स्पर्श दिया जा सकता है। लेखिका की यह चिन्ता है कि लड़ाइयाँ लड़ते-लड़ते कहीं हम प्यार की भाषा न भूल जायें। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रस्तुत है चन्द्रकान्ता का यह सशक्त कहानी संग्रह—'अब्बू ने कहा था'।
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