अब चिट्ठी कभी नहीं आयेगी - दर्द और रूमान के ऐकान्तिक क्षण, सौन्दर्य बोध की उजली चमक, पसीने से भीगी चिन्ताकुल पेशानी के विविध चित्र, एक मोहक संगीत, एक नदी का बहाव, एक हवा का नम झोंका, एक धड़कती हुई ज़िन्दगी, एक अतृप्त प्यास, एक कसक...यानी दुग्गल की कहानियाँ। अरुणाभ कमलपुष्प के भीतर की सबसे कोमल पाँखुरियों अथवा स्फटिक-सी पारदर्शी इन कहानियों में मोम की तरह पिघलने वाली मानवीय संवेदनाओं को लेखक ने इतने सहजभाव से उतारा है कि पाठक विभोर होकर उन्हें तीव्रता से स्वयं अनुभव करने लगता है। हर कहानी पढ़ने के बाद लगता है जैसे चाँदनी की एक नयी रेख सामने झरोखे में से फूटकर पलकों पर आ लगी हो। समर्पित है हिन्दी के प्रिय पाठकों के लिए दुग्गल जी की बहुचर्चित कहानियों का यह एक विशिष्ट संकलन।
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