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Aadhunikta Par Punarvichar

Ajay Tiwari Author
Hardbound
Hindi
9789355184962
2nd
2022
208
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₹550.00

आधुनिकता पर पुनर्विचार - 'आधुनिकता पर पुनर्विचार' से स्पष्ट होता है कि आधुनिकता का सम्बन्ध किस तरह बाज़ार, जनतान्त्रिक मूल्यबोध और वैज्ञानिक दृष्टि से है। 'मध्यकालीन' और 'आधुनिक' के विवाद को नये सिरे से उठाते हुए अजय तिवारी मध्यकालीनता को प्रचलित यूरोपीय धारणा को भारत पर लागू करने से एतराज़ करते हैं। वे भक्ति आन्दोलन को सामन्तवाद विरोधी संघर्ष से जोड़कर देखते हुए तार्किक ढंग से स्पष्ट करते हैं कि भारत में लोकजागरण किस तरह विश्व बाज़ार से भारत की मण्डियों के सम्बन्ध का नतीजा है। वह रामविलास शर्मा की अवधारणाओं का विकास करते हैं। उनकी आलोचना के निशाने पर निरन्तर सघन होता बौद्धिक उपनिवेशन है। उनका लेखन परम्पराओं से आलोचनात्मक संवाद करते हुए एक तरह से दिमाग़ का अन-उपनिवेशन है, जिसकी आज ज़रूरत है। आधुनिकता जब दोहरे संकट में फँसी हो और उत्तर-आधुनिकतावादियों ने बहुराष्ट्रीय साम्राज्यवाद का मार्ग खोल दिया हो, अजय तिवारी अपनी पुस्तक 'आधुनिकता पर पुनर्विचार' में आधुनिकता के भारतीय साँचों की खोज में प्रवृत्त होते हैं। वे आधुनिकता को परम्पराओं की व्याख्या करते हुए उसके द्वन्द्ववाद की पड़ताल करते हैं। उनके विश्लेषण तथ्यपरक, समावेशी और जनपक्षधरता से युक्त हैं। 'आधुनिकता पर पुनर्विचार' विविध विषयों पर लेखों का एक पठनीय संकलन है। इसमें बीसवीं सदी की नयी चेतना के संघर्ष से लेकर यथार्थवाद के विकास तक कई विचार-बिन्दु हैं। अजय तिवारी ने धर्मनिरपेक्ष संस्कृति की समस्याओं को उठाया है। वह वर्तमान संकट की वर्गचेतन व्याख्या के साथ प्रतिरोध की परम्परा और विकल्प की खोज भी करते हैं। उनके साहित्यिक साक्ष्य और मूल्यांकन से परम्परा, आधुनिकता और समकालीनता के कई उलझे सूत्र खुलते हैं।—शंभुनाथ

अजय तिवारी (Ajay Tiwari)

6 मई, 1955 । दिल्ली विश्वविद्यालय से अध्ययन । इतिहास की रणभूमि और साहित्य, नागार्जुन की कविता, प्रगतिशील आलोचना के सौंदर्यमूल्य, सौंदर्यमूल्य, सौंदर्य शास्त्र के प्रश्न, आलोचना और संस्कृति, मार्

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