काटना शमी का वृक्ष पद्मपंखुरी की धार से - 'काटना शमी का वृक्ष पद्मपंखुरी की धार से' (एक दृश्य काव्याख्यान) बहुचर्चित रचनाकार सुरेन्द्र वर्मा का नया और महत्त्वपूर्ण उपन्यास है। समय द्वारा भूले सुदूर ग्राम में छटपटाता युवा कवि कालिदास काव्यशास्त्र के परे जा, नितान्त मौलिक कृति 'ऋतुसंहार' की रचना करता है, पर उज्जयिनी विश्वविद्यालय का आचार्य अध्यक्ष उसे पढ़े बिना रद्दी की टोकरी में फेंक देता है। अपने आराध्य शिव को लेकर एक महाकाव्य की रूपरेखा भी उसने बना रखी है, अपने अनुकूल एक नयी महाकाव्य शैली का धुँधला-सा स्वरूप उसके भीतर सुगबुगा रहा है, पर वाङ्मय के किसी विद्वान से उसके बारे में चर्चा ज़रूरी है। नाट्य-रचना का कांक्षी कालिदास शाकुन्तल के प्रारम्भिक अंक लिख लेता है, पर उसका आन्तरिक समीक्षक समझ जाता है कि घुमन्तू रंगमण्डलियों से प्राप्त रंग-व्याकरण की उसकी समझ अभी कच्ची है। 'सभ्य संसार की विश्वात्मिका राजधानी उज्जयिनी' जाना होगा उसे! वहाँ परिष्कृत रंग-प्रदर्शन देखते हुए गहन होता है कालिदास का बाहरी और भीतरी संघर्ष। राष्ट्रीय साहित्य केन्द्र ऋतुसंहार को प्रकाशन योग्य नहीं पाता, पर लम्बी दौड़धूप के बाद मंचित होता है मालविकाग्निमित्र। पहले प्रदर्शन पर राजदुहिता प्रियंगुमंजरी से भेंट दोनों के जीवन का पारिभाषिक मोड़ बन जाती है। वह नियति थी, जिससे दुष्यन्त शकुन्तला के जीवन में सन्ताप लेकर आया। प्रियंगु क्या लेकर आयी? शाप मोटिफ़ है—कर्म का मूर्त स्वरूप, जो बताता है कि जाने-अनजाने नैतिक विधान में छेड़छाड़ करने का दण्ड व्यक्ति को भुगतना होता है। किसके लिए मन्तव्य था मेघदूत? और उसकी रचना क्या इसी दण्ड की भूमिका थी? पर कवि के लिए यह दण्ड एक दृष्टि से वरदान कैसे साबित हुआ? सबसे कम आयु के नवरत्न ने रघुवंश और कुमारसम्भव के लिए लालित्यगुणसम्पन्न वैदर्भी महाकाव्य शैली का अर्जन कैसे किया? व्यक्ति के रूप में व्यथा झेलते हुए रचनात्मक चुनौतियों का सामना कैसे किया जाता है और प्रतिष्ठा के शिखर पर होते हुए कैसे बनता है उसके त्याग का योग? आर्यावर्त के प्रथम राष्ट्रीय कवि बनने की क्षत-विक्षत प्रक्रिया। विधायक, मिथक-रचयिता और अप्रतिम संस्कृति प्रवक्ता कालिदास के लिए लेखक के जीवनव्यापी पैशन का परिणाम महाकवि पर यह पारिभाषिक उपन्यास है, जिसकी संरचना में उपन्यास की वर्णनात्मक शैली, नाटक की रंग युक्तियों, और सिनेमा की विखण्डी प्रकृति के सम्मिश्रण का संयोजन किया गया है। औपन्यासिक विधा में एक अभिनव प्रयोग।
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