Trandralok ka Praharee

Hardbound
Hindi
9789326350259
1st
2012
158
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तन्द्रालोक का प्रहरी - इतिहास में धर्म के नाम पर बहुत अन्याय और नृशंसता होने के बावजूद धर्म की भित्ति या मर्म जिस तरह से असत्य नहीं है, वैसे ही टोना-टोटका के नाम से होने वाली प्रवंचना और कुसंस्कार से समाज के पीड़ित होने के बावजूद इन सबका उत्स भी क्षणिक नहीं है। हमारे स्थूल इन्द्रियानुभूत जगत के बाहर (या इसके साथ ओतप्रोत रहकर) चेतना के अनेक स्तर, अनेक वास्तविकताएँ हैं। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि ये सब आधिभौतिक (supernatural) हैं पर इन सबके साथ आध्यात्मिकता का कोई सम्बन्ध नहीं। 'तन्द्रालोक का प्रहरी' में लेखक उक्त दो विपरीत धुरियों के बीच तनी रस्सी पर किसी नट की भाँति सन्तुलन दिखाता है। यहाँ न पुराने का तिरस्कार है और न नये की अवांछित सिफ़ारिश। मनोरोग चिकित्सा के सन्धान से पूर्व ओझा-गुनियों की तीन पीढ़ियों का दस्तावेज़ी इतिहास है——'तन्द्रालोक का प्रहरी'। यह अनुवाद प्रवहमान और ओड़िया का स्वाद अक्षुण्ण रखते हुए भी हिन्दी की मूल कृति का सा आनन्द देता है।

मनोज दास अनुवाद सुजाता शिवेन (Manoj Das Translated by Sujata Shiven )

मनोज दास - सन् 1934 में बालेश्वर जनपद के एक गाँव संकरी (ओडिशा) में जन्म । प्रमुख कृतियाँ - अमृत फल, आकासर इशारा, तन्द्रालोक का प्रहरी, प्रभंजन, गोधूलिर बाघ (उपन्यास); शेष बसन्तर चिट्ठी, आरण्यक, लक्ष्म

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