रेखाएँ दुःख की - वरिष्ठ रचनाकार विष्णुचंद्र शर्मा जिन अनुभवों को अपनी रचनाओं में रचते हैं वे प्रचलित पद्धति से नितान्त हटकर होते हैं। ये अनुभव एक ऐसे व्यक्ति के हैं जिसने जीवन को उसकी सम्पूर्ण ऊष्मा और सदाशयता के साथ जिया है। 'रेखाएँ दुःख की' में उपस्थित दो उपन्यासिकाएँ विष्णुचंद्र शर्मा के अनुभव संसार और अभिव्यक्ति कौशल को प्रकट करती हैं। 'रेखाएँ दुःख की' और 'बिगड़ी तस्वीरों का एलबम' को अलग-अलग पढ़ने के साथ मिलाकर भी पढ़ा जा सकता है। जीवन के यथार्थ का एक झीना-सा सूत्र दोनों उपन्यासिकाओं के मर्म को जोड़ देता है। जीवन संघर्ष तो स्पष्ट है, बीच-बीच से कौंधती है एक अदम्य जिजीविषा। दोनों उपन्यासिकाएँ समकालीन समस्याओं से जूझती हैं और सांकेतिकता के श्रेष्ठ तत्त्वों से लाभ उठाते हुए विकसित होती हैं। आधुनिक जीवन की विसंगतियों का चित्रण निश्चित रूप से पाठकों को प्रभावित करेगा। संवाद शैली और छोटे-छोटे विवरणों के कारण ये उपन्यासिकाएँ विशेष बन गयी हैं। विष्णुचंद्र शर्मा के कविमन की यह कथात्मक अभिव्यक्ति पर्याप्त महत्त्वपूर्ण है।
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