पाँच भक्त कवि - भक्ति आन्दोलन के पाँच प्रमुख रचनाकारों पर लिखित यह ऐसी आलोचनात्मक कृति है जो युवा पाठकों, छात्रों, शिक्षकों और भक्ति साहित्य के मर्म की खोज करनेवाले लोगों को सम्बोधित है। इस पुस्तक में एक ओर जहाँ इतिहास और समाज विज्ञान के क्षेत्र में होनेवाले भारतीय मध्ययुग से सम्बन्धित शोधकार्यों की रोशनी में नयी व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है, वहीं उसके साथ-साथ साहित्यिक समालोचना के विश्लेषण और विमर्शों को भी सन्दर्भ सहित प्रस्तुत किया गया है। जिन पाँच भक्त कवियों को लिया गया है, वे हैं— कबीर, मीराँबाई, जायसी, सूरदास और तुलसीदास। इन पाँचों रचनाकारों की अलग-अलग विशिष्टताओं ने भक्ति आन्दोलन में जिस वैविध्य की सृष्टि की थी, उसे उल्लेखनीय स्पष्टता के साथ विवेचना का विषय बनाया गया है। इसके साथ ही इन रचनाकारों की समकालीन प्रासंगिकता को भी विचार-विमर्श की दृष्टि से रेखांकित किया गया है। भक्तिकाल के इन रचनाकारों पर अबतक जो भी नया आलोचनात्मक लेखन और शोधकार्य हुआ है, उसे भी इस छोटी में आवश्यकता के अनुसार पुस्तक समाविष्ट किया गया है।
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