कितना अकेला आकाश - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्रीनरेश मेहता का यह प्रथम यात्रा संस्मरण 'कितना अकेला आकाश' में भारतीय कवि द्वारा अपनी सहज सर्जक दृष्टि से यूरोपीय जीवनधारा को परखने की चेष्टा है। यूगोस्लाविया के एक छोटे-से जनस्थान स्त्रूगा में आयोजित काव्य समारोह में एकमात्र भारतीय प्रतिनिधि के रूप में सहभागिता करने के लिए भेजे गये श्रीनरेश मेहता ने सहज कौतुक से न सिर्फ स्त्रूगा को देखा; बल्कि वहाँ के जीवन, वहाँ के स्त्री-पुरुषों की गतिविधियों, भावमुद्राओं, मानसिकताओं और हलचलों की भी मन के कैमरे में छवि उतारी। एनी और बुदिमका जैसे सौम्य और बुद्धिदीप्त महिलाओं के सहयोग ने कवि के अकेले और सूने आकाश को दीप्ति और उल्लास से भर दिया।
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