किराये का मकान -
यह उपन्यास एक ऐसी महिला के संघर्ष का ब्योरा है जिसने अपने दो बच्चों को 'सिंगल पेरेंट' बनकर पाला-पोसा है, पढ़ाया है और अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया है। उपन्यास में प्रीत नाम की तरुणी का जीवन चरित, माँ-बाप के अलगाव के बाद भी बच्चों के मज़बूत, सुन्दर और प्रेरणादायी मिसाल देने वाली एक कहानी की शक्ल में सामने आता है। समाज में मौजूद 'वाइट हाउज़' के पीछे घटते 'काले कारनामों' का बारीक़ चित्रण भी कहानी में गम्भीरता से किया गया है, जहाँ प्रभावकारी 'मीटू कैम्पेन' की झलक को पाठक देख सकेंगे।
मूल रूप से एक अकेली महिला का एक छोटे शहर में जटिल जीवन, सामाजिक उतार-चढ़ाव, पारिवारिक दुश्वारियाँ, बच्चों के नादान सपनों को पूरा करने की जद्दोजहद और युवा होती बेटी की तमाम समस्याओं से साक्षात्कार का शानदार प्रस्तुतीकरण इस उपन्यास के माध्यम से होता है। इन सबके साथ दो बेरोज़गारों की प्रेम कथा और मकान मालिकों के अत्याचार सहित किरायेदारों की बदतर स्थितियों से भी हम किराये का मकान के माध्यम से रूबरू होते हैं।
भारतीय ज्ञानपीठ से नवलेखन अनुशंसा पुरस्कार 2017 प्राप्त उपन्यासकार भूमिका का 'आसमानी चादर' के बाद दूसरा उपन्यास है। भूमिका द्विवेदी साहित्य जगत में मील का पत्थर उपेन्द्रनाथ अश्क की पुत्रवधू और बहुप्रतिभाशाली नीलाभ जी की पत्नी भी हैं, जो कि दिल्ली में रहकर अश्क जी की गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ा रही हैं।
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